( तर्ज बजाई बन्सरी मोहन , )
अरे यह चोर की नगरी ,
यहाँ कैसा खडा है तू
तस्वियाँ करले जल्दीसे ,
अकारथ क्यों पडा है तू ? || टेक ||
जो आते हैं यहाँ फँसते ,
बडा है जाल मायाका |
योगी और ग्यानि - ध्यानी भी ,
क्या उनसे भी बड़ा है तू ? || १ ||
टिकट ले हाथ में अपनी
नजर मत फेक बाजू में ।
जहाँ देखा पडा चक्कर ,
यह किस कारण नडा है तू ? ॥ २ ॥
भागसे करके ही आया ,
जनम मानव का ले करके ।
मगर अफसोस है बन्दे ,
मोह - मदमें जड़ा है तू ॥ ३ ॥
काट दे फाँस मायाका ,
खडा हो त्याग करने को ।
कपट , छल , मोह मत करना ,
समझ फिर तो चढा है तू ॥ ४ ॥
लगा गुरुग्यान की ज्योति ,
अंधेरा दूर करने को ।
कहे तुकड्या, तरेगा जब
तेरे मनसे लडा है तू ॥ ५ ॥
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